दुश्मन ना करे, दोस्त ने ऐसा काम किया है


वसुन्धरा के साथ विश्वासघात की तैयारी है नया कानून

दुश्मन ना करे, दोस्त ने ऐसा काम किया है

- अब्दुल सत्तार सिलावट
वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक
राजस्थान सरकार द्वारा लाये जा रहे भ्रष्टों को संरक्षण और मीडिया की कलम पर सरकारी अघोषित आपातकाल जैसी सख्ती का कानून भले ही विधानसभा में पास नहीं हो या लागू करने में कोई अडंगा लग जाये, लेकिन इतना तय है कि पिछले 15 साल याने 2003 से राजस्थान की 7 करोड़ जनता में लोकप्रिय मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे का राजस्थान की राजनीति से समापन का दौर शुरू हो गया है। और इस दौर की सफलता का श्रेय कांग्रेस, आप या विपक्षी नेताओं को नहीं बल्कि मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे को चारो ओर से घेरे संकीर्ण मानसिकता वाले सलाहकारों को जाता है जिन्हें वसुन्धरा विरोधी भाजपा के कुछ नेताओं, चार साल तक मंत्री नहीं बनने से कुंठीत विधायकों और उन ब्यूरोके्रट्स को जाता है जिनका कद तो मुख्य सचिव का है, लेकिन वसुन्धरा खेमे की नाराजगी के कारण उन्हें रोडवेज, रेवेन्यू बोर्ड के सदस्य, आयुर्वेद विभाग जैसे ‘डि-फ्रिज’ कहलाने वाले विभागों में काला पानी जैसी प्रताडना दी जा रही है।
भारत ही नहीं दुनिया भर में अब तक का इतिहास है कि अपनी लोकप्रियता की चरमसीमा पर पहुंचे नेताओं को उनके चारों ओर जुटे चाटुकारों ने धराशाई करवाया है। रूस को साम्राज्यवाद से कम्युनिज्म तक लाने वाले लेनिन की मूर्तियों को उन्हीं के समर्थकों ने 1991 में सार्वजनिक रूप से आन्दोलन चलाकर तोड़ा। इंदिरा गांधी में आपातकान की सोच पैदा करने वाली चौकड़ी को आज भी देश नहीं भुला पा रहा है। सिद्धार्थ शंकर राय (पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री), अरूण नेहरू, संजय गांधी जैसे लोगों के दिमाग की उपज थी आपातकाल। राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री बरकतुल्ला खान (1971) सरकारी कर्मचारियों के आन्दोलन के शिकार हुए। उनके सलाहकारों में चन्दनमल वैद का नाम लिया जाता है। महाराष्ट्र के लोकप्रिय मुख्यमंत्री रहे अब्दुल रहमान अंतुले के सलाहकारों ने गांव के सरपंचों के साथ अंतुले की फोटो पंचायत घरों में लगवाकर इंदिरा गांधी की नाराजगी में सीमेंट काण्ड करवाया गया। वसुन्धरा राजे को उनके सलाहकार उसी ‘ट्रेक’ पर लेकर आगे बढ़ रहे हैं।
राजस्थान की जनता के दिलों में मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के प्रति आज भी सम्मान है और उनकी सभाओं में तथा जिलों के दौरों में भाजपाईयों से अधिक दूसरे दलों के नेता चोरी-छुपे व्यक्तिगत सम्बन्ध बताकर मिलते हैं। लेकिन इस बार भाजपा के उन नेताओं की योजना क्रियान्विती की ओर बढ़ रही है जो 2003 से 2008 तथा 2013 से अब तक राजस्थान की मुख्यमंत्री पद से वसुन्धरा राजे को दिल्ली की भाजपा हाईकमान से हटवाकर अपना मनपसंद मुख्यमंत्री बनाने में हर बार असफल रहे हैं।
मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने पिछले चार साल से प्रदेश की राजनीति के मार्गदर्शक वसुन्धरा समर्थकों के साथ मीडिया में वसुन्धरा राजे के प्रति सहानुभुति पैदा करने वाली टीम और कुछ अखबारों के उन दोस्तों के लिए अपने दरवाजे बंद कर दिये हैं। जो सरकारी योजनाओं की जनता में प्रतिक्रिया, सरकार की कमियों को मुख्यमंत्री तक पहुंचाने का साहस रखते थे। मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के पास आज भी इस बात की खबर नहीं है कि राजस्थान सरकार की योजनाओं को जनता तक पहुंचाने वाले सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग की कमान उपखण्ड अधिकारी के हाथों में देकर राजस्थान की जनता को सरकारी प्रगति से दूर कर दिया गया है। वसुन्धरा राजे केबिनेट बैठकों में जनहित, आदिवासी कल्याण, ग्रामीण विकास और बाढ़ पीड़ितों की राहत के लिए जो करोड़ों की योजनाएं लाती है उनकी जानकारी सचिवालय में आयोजित मंत्री राजेन्द्र राठौड़ की प्रेस कांफे्रंस तक ही सीमित रहती है। सभी जानते हैं कि प्रदेश के बड़े समाचार पत्र सरकारी खबरों को दस सेंटीमीटर एक कॉलम से अधिक छापते भी नहीं है और करोड़ों के विज्ञापन लेने वाले टीवी न्यूज चैनल सरकारी समाचारों से अधिक मंत्रियों की फोटो वाले विज्ञापनों में विश्वास करते हैं। और जनता टीवी पर विज्ञापन आते ही चैनल बदल कर आगे बढ़ जाती है।
पिछले चार साल में वसुन्धरा राजे की लोकप्रियता घटकर उस हालात में पहुंच गई है जैसे मिट्टी के बांध में अकाल से चार साल तक पानी नहीं आने पर चूहों द्वारा बांध की विशाल दिवार में बिल बनाकर इतने छेद कर दिये जाते हैं कि पांचवे साल में तेज बारीश के पानी के भराव की ताकत चूहों के बिलो से कमजोर दिवार नहीं सह पाती है और बांध टूट जाता है। बस ऐसी ही तैयारी वसुन्धरा राजे के चारों और लगे सलाहकारों ने लोकप्रियता की दिवार में छेद बनाकर 2018 में पांच साल पूरे होने का जश्न मनाने की तैयारी कर रखी है। 
मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के समर्थक अखबार जिन में चार पेज, आठ पेज दैनिक अखबारों के साथ पाक्षिक, साप्ताहिक अखबार जो राजस्थान सरकार के सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग की वेबसाइट की खबरों से अखबार को भर देते थे। उनके सरकारी विज्ञापनों की ‘ऑक्सीजन’ प्रचार-प्रसार से अनभिज्ञ निदेशक और मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार ने पिछले चार साल से बंद करके मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे को आमजन से दूर कर दिया है। वसुन्धरा राजे के मीडिया सलाहकार चार पेज, आठ पेज, पाक्षिक, साप्ताहिक अखबारों की हजार-पांच सौ प्रतियों के जनता पर प्रभाव से अनभिज्ञ है। ऐसे सलाहकारों को आपातकाल की सेंसरशिप पर एक नजर डालनी चाहिये, जिसमें बहादुरशाह जफर मार्ग की अखबारों की विशाल बिलि्ंडगों को सड़क चौड़ा करने के नाम पर तोड़ा गया था, बिजली कनेक्शन काट दिये गये थे। उस समय इंडियन एक्सपे्रस ने प्रिंटिंग मशीन चलाकर लाखों या हजारों नहीं केवल कुछ सैकड़ों प्रतियां नई दिल्ली रेल्वे स्टेशन से देश भर में जाने वाले पैसेन्जर ट्रेनों के डिब्बों में दस-दस प्रतियां डलवाकर देश भर में इंदिरा विरोधी लहर पैदा कर दी थी। आजादी के आन्दोलन में भी जब ऑफसेट प्रिंट नहीं थी हाथों से छापकर गिनती के अखबारों ने देश में इंकलाब पैदा कर अंग्रेजों से आजादी दिलवाने में अहम भूमिका निभाई है। 
अधिकारीयों की सोच का स्तर क्या होता है और एपीआरओ स्तर का मीडिया सलाहकार पत्रकारों से विरोधाभास रखने से आगे सोच भी नहीं सकता है। इस सोच से भले ही मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे की लोकप्रियता समाप्त हो रही हो, लेकिन मीडिया सलाहकार का अहम तो संतुष्ट हो रहा है। ऐसी ही सोच के लोग भ्रष्टों को संरक्षण देने के साथ जनहित में बिना सरकारी विज्ञापनों के जूंझ रहे मीडिया की कलम पर अंकुश लगाने की सलाह देकर मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे से नया कानून लागू करवाने में लगे हैं।

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