जीएसटी मोदी का भविष्य बनेगी...


जीएसटी मोदी का भविष्य बनेगी...

अब्दुल सत्तार सिलावट - वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक

नई दिल्ली। मोदी सरकार के तीन साल। लोकप्रिय भाजपा सरकार के एक तरफा हर फैसले को पूरे देश ने स्वीकारा। विपक्षी, विरोधी और व्यक्तिवाद सरकार का आरोप लगाने वाले मोदी विरोधी भी देश भर के समर्थन के सामने नतमस्तक होकर विरोध की राजनीति में स्वयं ही थककर 2019 के इन्तजार में बैठ गये।
मोदी की लोकप्रियता को तीन साल बाद जीएसटी टेक्स की पेचिदगीयों और प्याज के छिलकों की तरह हर शर्त के पीछे एक शर्त और व्यापारी को चोर के रूप में जीएसटी की हर भूल के पीछे की सजा का भय। अब मोदी भक्तों में ‘‘मोदी-मोदी’’ के लगाये नारों को अपनी भूल समझने पर मजबूर कर रहे हैं तथा मोदी की आलोचना करने वालों पर बाहें तानकर आने वाले मजबूरन जीएसटी के विरोध में मौन जुलूस, काली पट्टीयां बांधकर विरोध करने लगे हंै।
सरकारों को चुनावों में बहुमत मिले। यहां तक तो ठीक है। इसी प्रकार कोई नेता लोकप्रिय हो, जनप्रिय हो। यह भी ठीक है, लेकिन अत्याधिक मतों से जीत और नेता का अत्याधिक लोकप्रिय होना खतरनाक होता है। इसे Short Term Effection (शॉर्ट टर्म एफेक्शन) कहते हैं। जनता को ऐसी सरकारों और ऐसे नेता से उम्मीदें अधिक होती है और उम्मीदें पूरी करवाने की भी जल्दबाजी होती है। ठीक ऐसा ही हुआ है हमारे लोकप्रिय नेता नरेन्द्र मोदी के साथ। 2014 में ऐतिहासिक बहुमत से जीतकर पूरे देश के प्रदेशों में भगवा सरकारें जीतवाने वाली मोदी सरकार के साथ।
लोकसभा चुनाव 2014 की चुनावी सभाओं में नरेन्द्र मोदी के वायदे 15 लाख बैंक खातों में, दुश्मन देश के खिलाफ एक सर के बदले 10 या 100 सर कलम करने की बात, बेरोजगारों को करोड़ों नौकरियां, गरीब को अपना घर-अपनी छत, बहुत से ऐसे वादे जिन्हें भारत के सवा सौ करोड़ लोगों को पिछले सत्तर साल से इन्तजार था। कोई सरकार पूरा नहीं कर पाई। और तीन साल बाद देश को पता चला कि नरेन्द्र मोदी की सरकार भी पिछली सरकारों जैसी ही निकली। लेकिन पिछली सरकारों और नरेन्द्र मोदी सरकार में एक फर्क निकला वह था पिछली सरकारों ने 130 डॉलर बैरल पर 70 रूपये लीटर में पैट्रोल बैचा और मोदी सरकार ने 20 डॉलर पर भी 70 रूपये से पैट्रोल को नीचे नहीं आने दिया। देश के पूंजीपतियों के NPA अकाऊन्ट में लाखों करोड़ के कर्जे माफ, किसान दस-बीस हजार के कर्जे पर आत्महत्या कर रहा है। इन पर नोटबंदी जैसे बड़े हादसे और अब जीएसटी के दूरगामी परिणामों से स्वयं मोदी भक्त अपने ही लोकप्रिय नेता नरेन्द्र मोदी और अपनी ही 70 साल बाद बनी सपनों की भाजपा सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरने को मजबूर हो गये हैं।
नोटबंदी की देशव्यापी उत्पीड़न के बाद भले ही आप उत्तर प्रदेश, मणिपुर, गोवा, छत्तीसगढ़ में भाजपा का परचम लहराने में कामयाब रहे हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जीएसटी भी नोटबंदी की तरह भाजपा के तेज गति से बढ़ते कदमों को रोकने में असफल होगा या भारत की जनता अब भी आपके साथ 2014 की तरह 2018 के विधानसभा एवं 2019 के लोकसभा चुनावों में ‘‘मोदी-मोदी’’ के नारे लगाते हुए भाजपा के केन्द्रीय कार्यालय में चुनाव परिणामों के बाद आतिशबाजी, नासिक के ढ़ोल-नगाड़ों की तेज आवाजों के पीछे नेताओं को एक दूसरे का मुंह मीठा करने का मौका फिर देगी। 
इस पर सिर्फ अमित शाह के साथ चल रहे भगवा रंग का चश्मा पहने चाणक्य ही नहीं बल्कि नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री कार्यालय में बैठे गुजराती विशेषज्ञ जो सोशल मीडिया, अखबारों और मोदी विरोधी टीवी एंकरों को आज भी सुझाव के रूप में देखकर उन पर तत्काल कार्यवाही करते हैं। उन्हें भी मौजूदा माहौल में जीएसटी के लाभ से अधिक इससे होने वाले नुकसान पर मंथन, विचार-विमर्श कर लेना चाहिये।
नरेन्द्र मोदी जी 2014 में आपने देश की जनता की दुखती रगों (नसों) पर हाथ रखकर, उन्हें सहलाकर गुजरात के मुख्यमंत्री से देश के प्रधानमंत्री ही नहीं बल्कि विश्व के बड़े नेताओं में अमेरिका के बाद रूस के दो नम्बर पुतिन को तीन नम्बर पर धकेल कर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दो नम्बर पर पहुंच गये। यह गौरवशाली स्थिती बनाये रखना आज नरेन्द्र मोदी और पूरे देश के लिए एक चुनौती है। इस चुनौती को आपके साथ पूरा देश स्वीकार करने के लिए तैयार है, लेकिन मोदी जी 2014 के बाद आपने देश के सवा सौ करोड़ लोगों के दुःख दर्द का सर्वे करवाना बंद कर दिया। उनके मन की पीड़ा सुनना बंद कर सिर्फ आपके ‘‘मन की बात’’ ही सवा सौ करोड़ लोगों पर थोप रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी आजादी के 70 साल बाद भी देश के लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ पत्रकारिता ही है और आपने देश के कुछ न्यूज चैनलों के सहारे तीन साल तो सफलतापूर्वक निकाल लिये। लेकिन मेरे देश की जनता में आपकी शान में झूठी प्रशंसा के पुल बांधने वाले न्यूज चैनलों से विश्वास उठ गया है। कुछ समाचार पत्र भी अपनी निष्पक्षता की प्रतिष्ठा खो चुके हैं। इसलिए सिर्फ न्यूयॉर्क टाइम्स या देश के एनडीटीवी न्यूज चैनल के प्रणव रॉय या रविश कुमार ही नहीं भाजपा की कौख में पैदा हुआ राजस्थान पत्रिका के मालिक गुलाब कोठारी भी देश की वाणिज्यिक राजधानी मुम्बई में सिर्फ भाजपा सरकार ही नहीं बल्कि देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन पर खुलकर आलोचना कर चुके हैं।
न्यूयॉर्क टाइम्स, एनडीटीवी या गुलाब कोठारी मोदी जी आपकी नजर में चिंगारी हो सकते हैं लेकिन कुशल राजनेताओं ने हमेशा चिंगारियों से सबक लिया है। उन्हें शौले और बाद में भड़कती लपटें बनने का मौका नहीं दिया है। हम आपके आलोचक नहीं है, लेकिन अंधभक्त भी नहीं है। पत्रकारिता के धर्म का पालन ईमानदारी से करते हुए जनता के बीच जीएसटी के रूप में उठ रही आपके विरोध की ‘‘चिंगारी’’ को आप तक पहुंचा रहे हैं। उपयुक्त लगे तो इसे बुझाने का प्रयास करें।

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